महेश भट्ट करीब 20 साल बाद बतौर निर्देशक फिल्म लाए हैं, सड़क 2. इस लंबे समय में सिनेमा की मुख्य सड़क से कई पगडंडियां निकल चुकी हैं. सिनेमा अपना अंदाज-ए-बयां बदल चुका है. महेश भट्ट की यह फिल्म उन्हें किसी राह पर बढ़ता नहीं दिखाती. वह 1990 के दशक के मोड़ पर ही ठहरे हुए हैं. नतीजा यह कि नाकाम साबित होते हैं. ये सभी काल्पनिक और निजी त्रासदी के कारण मानसिक रूप से परेशान हैं. ये लोग या तो मनोचिकित्सक की मदद ले रहे हैं या फिर इन्हें देख कर लगता है कि इन्हें दिमाग के डॉक्टर को दिखाना चाहिए. कहानी आर्या (आलिया भट्ट) की है. वह देसाई ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की इकलौती वारिस है. उसकी स्वर्गीय मां वसीयत में लिख गई थी कि 21 साल की होते ही सारी जायदाद आर्या के नाम हो जाएगी. सात दिन बाद आर्या 21 की होने को है. मगर पिता और सौतेली मां बन चुकी मौसी उसे मानसिक रूप से बीमार बताने या फिर उसकी हत्या करने की चाल चल रहे हैं. इस योजना के पीछे एक बाबा (मकरंद देशपांडे) का दिमाग है. आर्या भाग जाती है. उधर, अपनी पत्नी की मौत के बाद आत्महत्या की कोशिश में नाकाम रवि किशन (संजय दत्त) अब आर्या का टैक्सी ड्राइवर है. आर्या को रानीखेत और वहां से कैलाश पर्वत जाना है. 21वां जन्मदिन वहीं मनाना है. अब विलेन पीछे लगे हैं. कैसे वे आर्या को पकड़ेगे. उसे पागल घोषित कराएंगे या हत्या कर देंगे. हीरो (आदित्य रॉय कपूर) क्या असली हीरो साबित होगा. ऐसे में रवि का क्या रोल होगा. इन तमाम सवालों के जवाब बहुत ही उबाऊ ढंग से सामने आते हैं।